मृदा में फसलों का नियोजन


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लेखक

  • आदित्य कुमार सिंह क्षेत्राीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, भरारी, झांसी (उत्तर प्रदेश)
  • नरेन्द्र सिंह बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, बांदा (उत्तर प्रदेश)
  • एस.एच. कुशवाहा महात्मा गांधी चित्राकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, चित्राकूट, सतना (मध्य प्रदेश)

सार

बुंदेलखंड की प्रकृति ने अनेक प्रकार की मृदा व जलवायु और उन पर उगाई जा सकने वाली वनस्पतियां उपलब्ध करवाई हैं। किसी पफसल को ताप व आद्र्रता की आवश्यकता पड़ती है तथा विपरीत परिस्थितियों में उन पफसलों को उगाने पर उसकी मानक मात्रा और गुणवत्ता प्रभावित हो जाती है। बुंदेलखंड का भूक्षेत्रापफल उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रापफल का 12.21 प्रतिशत है, जो जनपद झांसी, जालौन, ललितपुर, महोबा, हमीरपुर, बांदा एवं चित्राकूट जनपद तक पैफला है। यहां पाई जाने वाली लाल व काली मृदा में जैव पदार्थ, नाइट्रोजन व पफाॅस्पफोरस की कमी पाई जाती है। लाल मृदा प्रायः उथली होने के साथ कम जलधारण क्षमता वाली होती है। इस कारण अवशेष नमी पर रबी की पफसलों का लेना संभव नहीं होता है। इसमें पपड़ी बहुत पड़ती है तथा सूखने पर बहुत कठोर हो जाती है। इसके कारण बीजों का उगना कठिन हो जाता है।

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प्रकाशित

2023-03-17

कैसे उद्धृत करें

सिंह आ. क., सिंह न., & कुशवाहा ए. (2023). मृदा में फसलों का नियोजन. खेती, 75(11), 24–25. Retrieved from https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/204