ग्रीष्मकालीन मूंग की वैज्ञानिक खेती


सार देखा गया: 9 / PDF डाउनलोड: 7

लेखक

  • मोहम्मद हसनैन कृषि विज्ञान केंद्र, चित्तौड़ा, मुजफ्रपफरनगर, सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ (उत्तर प्रदेश)
  • गुफरान अहमद इंटीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
  • धीर प्रताप इंटीग्रल विश्वविद्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
  • राजीव कुमार सिंह भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
  • अंकुर त्रिपाठी आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)

सार

देश के उत्तर और पूर्व के सिंचित क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती का क्षेत्रापफल बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं। उत्तर भारत के जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पूर्ण सुविधा है, उन क्षेत्रों के किसानों को गेहूं, मटर, मसूर, लाही, चना इत्यादि फसलों के उपरांत कम अवधि वाली मूंग प्रजाति की खेती करनी चाहिए। इससे किसानों को कम लागत और थोड़े समय में अच्छा मुनाफा मिल सकता है तथा धान की फसल लगाने से पहले खाली पड़ी जमीन का सही उपयोग भी हो जाता है।

डाउनलोड

Download data is not yet available.

##submission.downloads##

प्रकाशित

2023-05-16

कैसे उद्धृत करें

हसनैन म., अहमद ग., प्रताप ध., सिंह र. क., & त्रिपाठी अ. (2023). ग्रीष्मकालीन मूंग की वैज्ञानिक खेती. खेती, 76(1), 10–12. Retrieved from https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/312

अंक

खंड

Articles