जीरो टिलेज पद्धति से आलू उत्पादन
44 / 3
Abstract
आलू, भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। उत्पादन की दृष्टि से इसका स्थान हमारे देश में चावल एवं गेहूं के बाद तीसरा है। हाल के कुछ वर्षों में दुनिया में बढ़ती जनसंख्या एवं खाद्यान्न की कमी को देखते हुए आलू को खाद्य सुरक्षा फसल के एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। देश में आलू का क्षेत्राफल 1949-50 के 2.30 लाख हैक्टर से बढ़कर 2019-20 में 20.55 लाख हैक्टर तथा उत्पादकता 6.60 टन प्रति हैक्टर से बढ़कर 23.67 टन प्रति हैक्टर पहुंच गई है। देश में आलू उत्पादन बढ़ाने में आलू उत्पादक राज्यों ने प्रमुख भूमिका निभाई है। लेकिन भारत के ज्यादातर हिस्सों में आलू उत्पादन के लिए परंपरागत विधि से आलू की रोपाई की जाती है जिसमें बहुत ज्यादा ऊर्जा, श्रम, रासायनिक खादों एवम सिंचाई की जरूरत होती है। परंपरागत विधि में खेत की अधिक जुताई करने से मृदा की संरचना में बदलाव के साथ-साथ उर्वरता क्षमता में कमी आई है। जिन क्षेत्रों में धन की कटाई कंबाइन मशीन से की जाती है वहां पर आलू लगाने से पहले धन के फसल अवशेषों को ज्यादातर जला दिया जाता है जिससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है।
Downloads
Downloads
Submitted
Published
Issue
Section
License
Copyright (c) 2023 फल फूल

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License.
फल फूल में प्रकाशित लेखों का कॉपीराइट भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पास निहित है, जिसे भारत या विदेश में किसी भी संगठन के साथ किसी भी समझौते में प्रवेश करने का अधिकार है, जो रिप्रोग्राफी, फोटोकॉपी, भंडारण और सूचना के प्रसार में शामिल है। इन पत्रिकाओं में सामग्री का उपयोग करने में परिषद को कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते जानकारी का उपयोग अकादमिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा हो, लेकिन व्यावसायिक उपयोग के लिए नहीं। आईसीएआर को देय क्रेडिट लाइन दी जानी चाहिए जहां सूचना का उपयोग किया जाएगा।