जीरो टिलेज पद्धति से आलू उत्पादन


44 / 3

Authors

  • सुरेश कुमार ककरालिया अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सीआईपी), बिहार, भारत
  • मार्सेलगट्टो अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सीआईपी), हनोई, वियतनाम
  • बृजेश कुमार अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सीआईपी), उड़ीसा, भारत
  • संप्रीति बरुआ अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सीआईपी), नई दिल्ली, भारत
  • जान क्रुज अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (सीआईपी), लीमा, पेरू

Abstract

आलू, भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। उत्पादन की दृष्टि से इसका स्थान हमारे देश में चावल एवं गेहूं के बाद तीसरा है। हाल के कुछ वर्षों में दुनिया में बढ़ती जनसंख्या एवं खाद्यान्न की कमी को देखते हुए आलू को खाद्य सुरक्षा फसल के एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। देश में आलू का क्षेत्राफल 1949-50 के 2.30 लाख हैक्टर से बढ़कर 2019-20 में 20.55 लाख हैक्टर तथा उत्पादकता 6.60 टन प्रति हैक्टर से बढ़कर 23.67 टन प्रति हैक्टर पहुंच गई है। देश में आलू उत्पादन बढ़ाने में आलू उत्पादक राज्यों ने प्रमुख भूमिका निभाई है। लेकिन भारत के ज्यादातर हिस्सों में आलू उत्पादन के लिए परंपरागत विधि से आलू की रोपाई की जाती है जिसमें बहुत ज्यादा ऊर्जा, श्रम, रासायनिक खादों एवम सिंचाई की जरूरत होती है। परंपरागत विधि में खेत की अधिक जुताई करने से मृदा की संरचना में बदलाव के साथ-साथ उर्वरता क्षमता में कमी आई है। जिन क्षेत्रों में धन की कटाई कंबाइन मशीन से की जाती है वहां पर आलू लगाने से पहले धन के फसल अवशेषों को ज्यादातर जला दिया जाता है जिससे पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है।

Downloads

Download data is not yet available.

Downloads

Submitted

2023-05-17

Published

2023-05-17

How to Cite

ककरालिया स. क., मार्सेलगट्टो, कुमार ब., बरुआ स., & क्रुज ज. (2023). जीरो टिलेज पद्धति से आलू उत्पादन. फल फूल, 44(3), 34-36. https://epatrika.icar.org.in/index.php/phalphool/article/view/348