करौंदा का मूल्य संवर्धन

लेखक

  • प्रीति वर्मा कृषि विज्ञान केन्द्र, वनस्थली विद्यापीठ, टोंक (राजस्थान)
  • डी.वी. सिंह कृषि विज्ञान केन्द्र, वनस्थली विद्यापीठ, टोंक (राजस्थान)
  • नरेश कुमार अग्रवाल कृषि विज्ञान केन्द्र, वनस्थली विद्यापीठ, टोंक (राजस्थान)

सार

करौंदा (कैरिसा कैरेंडस) एक झाड़ीनुमा पौध है। इसकी खेती राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश में की जाती है। यह पौध बीज से अगस्त या सितम्बर में 1.5 मी. की दूरी पर लगाया जाता है। इसकी कटिंग या बडिंग भी की जा सकती है। इसके दो वर्ष के पौधे में फल आने लगते हैं। इस पौधे में फल जुलाई से सितम्बर के बीच पक जाते हैं। पफल एवं सब्जियों के मूल्य संवर्धित उत्पाद आय सृजन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं, परन्तु तुड़ाई पश्चात्, विपणन एवं प्रसंस्करण ज्ञान के अभाव के कारण किसानों को उचित मुनापफा नहीं मिल पाता। करौंदा में नमी अध्कि होने के कारण इसको लम्बे समय तक संरक्षित नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही करौंदा का कसैला और अम्लीय स्वाद होने के कारण इसका उपयोग सीमित है, जिससे किसान को उचित बाजार मूल्य नहीं मिल पाता। अतः करौंदा के मूल्य संवर्धित उत्पाद जैसे अचार, जैम, जैली, मुरब्बा, स्क्वैश, चटनी इत्यादि बनाकर इनके उपयोग के साथ-साथ बाजार मूल्य को भी बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार ग्रामीण समुदाय करौंदा के मूल्य संवधर््न के माध्यम से अपनी आय एवं आजीविका को बढ़ाने के साथ-साथ अपने पोषण स्तर में भी सुधर कर सकते हैं।

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प्रकाशित

2024-06-25

कैसे उद्धृत करें

प्रीति वर्मा, डी.वी. सिंह, & नरेश कुमार अग्रवाल. (2024). करौंदा का मूल्य संवर्धन. फल फूल, 45(3), 15-17. https://epatrika.icar.org.in/index.php/phalphool/article/view/1176