नई किस्मों के विकास में बीजू आम की उपयोगिता

लेखक

  • संजय कुमार सिंह भाकृअनुप-केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा डाकघर काकोरी, लखनऊ
  • देवेन्द्र पाण्डेय भाकृअनुप-केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा डाकघर काकोरी, लखनऊ
  • अंजू वाजपेयी भाकृअनुप-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  • शिवपूजन भाकृअनुप-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
  • कुलदीप श्रीवास्तव भाकृअनुप-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

सार

हाल ही में जीनोमिक संसाधनों की उपलब्धता से आम के कुशल प्रजनन की सुविधा मिली है। आम का नियंत्रित परागण चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि हजारों पुष्पगुच्छ वाले फूलों में से केवल कुछ ही फल के रूप में विकसित होते हैं। इसलिए, प्रजनन कार्यक्रम में अनुकूल संकरों का चयन करने के लिए खुले-परागण वाले पौधों का जीनोटाइप एक श्रम-बचत तरीका हो सकता है। अधिकांश भारतीय किस्में मोनो-भ्रूण हैं और इसलिए उनकी गुठली की प्रकृति विषमयुग्मजी है। अधिकांश परंपरागत फल-वृक्ष प्रजनन परियोजनाओं, बीजू पौध के बेहतरीन प्रदर्शन एवं पौध चयन पर आधारित होती हैं। चयनित बीजू पौधों को वानस्पतिक रूप (ग्राफ्रिंटग) से प्रसारित किया जाता है चूँकि यह ब्रीडर के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

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प्रकाशित

2024-06-25

कैसे उद्धृत करें

संजय कुमार सिंह, देवेन्द्र पाण्डेय, अंजू वाजपेयी, शिवपूजन, & कुलदीप श्रीवास्तव. (2024). नई किस्मों के विकास में बीजू आम की उपयोगिता. फल फूल, 45(3), 34-36. https://epatrika.icar.org.in/index.php/phalphool/article/view/1186