जनजातीय क्षेत्र में कुल्थी की खेती

लेखक

  • अमितेश कुमार सिंह वैज्ञानिक सस्य विज्ञान, ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केन्द्र, चकेश्वरी फार्म, गोड्डा झारखण्ड
  • राकेश कुमार वैज्ञानिक सस्य विज्ञान, ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केन्द्र, चकेश्वरी फार्म, गोड्डा झारखण्ड
  • सूर्य भूषण वैज्ञानिक सस्य विज्ञान, ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केन्द्र, चकेश्वरी फार्म, गोड्डा झारखण्ड
  • रवि शंकर वैज्ञानिक सस्य विज्ञान, ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केन्द्र, चकेश्वरी फार्म, गोड्डा झारखण्ड
  • अमित कुमार सिंह वैज्ञानिक सस्य विज्ञान, ग्रामीण विकास ट्रस्ट-कृषि विज्ञान केन्द्र, चकेश्वरी फार्म, गोड्डा झारखण्ड

सार

कुल्थी भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। इसका दाना मानव के आहार में दाल और पशु के लिये दाने व चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको हरी खाद के रूप में भी उपयोग करते हैं। इसमें 22% प्रोटीन, 58% कार्बोहाइड्रेट के अलावा आवश्यक पोषक तत्व जैसे-पफाॅस्पफोरस, कैल्शियम, लौह तत्व और विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। पेचिश, कब्ज, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, मूत्रा समस्याओं, पीलिया, बवासीर, गुर्दे की पथरी और पित्ताशय की पथरी में कुल्थी का चूर्ण या दाल बनाकर औषधी के रूप में सेवन करना बहुत लाभदायक होता है। यह शरीर में विटामिन ‘ए’ की पूर्ति कर पथरी को रोकने में मददगार है। कुल्थी को गरीबों की दाल कहा जाता है।

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प्रकाशित

2022-11-16

कैसे उद्धृत करें

सिंह अ. क., कुमार र., भूषण स., शंकर र., & सिंह अ. क. (2022). जनजातीय क्षेत्र में कुल्थी की खेती. फल फूल, 43(6), 37-38. https://epatrika.icar.org.in/index.php/phalphool/article/view/25