पर्वतीय क्षेत्रों में समन्वित मछलीपालन

लेखक

  • रेनू जेठी भाकृअनुप-शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, भीमताल (उत्तराखंड)
  • नित्यानन्द पाण्डे भाकृअनुप-शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, भीमताल (उत्तराखंड)
  • सुरेश चन्द्रा भाकृअनुप-शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, भीमताल (उत्तराखंड)

सार

पर्वतीय क्षेत्रों में कठिन भौगोलिक परिस्थितियां एवं वर्षा आधारित कृषि होने के कारण कृषि उत्पादकता काफी कम है। यहां के किसानों के लिए ऐसी तकनीक विकसित करने की आवश्यकता है, जिससे कम क्षेत्रापफल में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। ऐसे क्षेत्रों में मत्स्यपालन के साथ-साथ मुर्गीपालन तथा सब्जी उत्पादन की समन्वित प्रणाली कारगर है। इससे कृषकों को कम लागत में मछली के अतिरिक्त सब्जी,मुर्गी का मांस व अण्डे के रूप में पौष्टिक एवं प्रोटीनयुक्त आहार भी प्राप्त हो सकते हैं। यह पद्धति  अपशिष्ट पदार्थों के पुनरावर्तन एवं उनके निदान के लिए सर्वोत्तम है। इस पद्धति से भूमि और जल संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है।

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प्रकाशित

2024-06-19

कैसे उद्धृत करें

रेनू जेठी, नित्यानन्द पाण्डे, & सुरेश चन्द्रा. (2024). पर्वतीय क्षेत्रों में समन्वित मछलीपालन. खेती, 76(12), 8-9. https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/1110