अजोला की खेती

लेखक

  • पीयूष कुमार भार्गव बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची-834006 (झारखण्ड)
  • संबिता भट्टाचार्य बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची-834006 (झारखण्ड)
  • सुलोचना बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची-834006 (झारखण्ड)
  • शम्भुनाथ कर्माकार बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची-834006 (झारखण्ड)
  • शिव मंगल प्रसाद केन्द्रीय वर्षाश्रित उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केन्द्र, हजारीबाग (झारखण्ड)

सार

अजोला एक महत्वपूर्ण बहुगुणी पफर्न है। इसका उपयोग पशुओं, मछली एवं कुक्कुट के चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी उपज लागत भी बहुत कम (एक रुपया प्रति कि.ग्रा.) होती है। यह तेजी से बढ़ने वाली एक प्रकार की जलीय पफर्न है, जो पानी की सतह पर छोटे-छोटे समूह में सघन हरित गुच्छ की तरह तैरती रहती है। भारत में मुख्य रूप से अजोला की प्रजाति अजोला पिन्नाटा पायी जाती है। यह गर्मी सहन करने वाली किस्म है। इनकी पंखुड़ियों में एनाबिना नामक नील हरित काई के प्रजाति का एक सूक्ष्मजीव होता है, जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करता है। हरे खाद की तरह यह पफसल को नाइट्रोजन की पूर्ति करता है।

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प्रकाशित

2024-06-19

कैसे उद्धृत करें

पीयूष कुमार भार्गव, संबिता भट्टाचार्य, सुलोचना, शम्भुनाथ कर्माकार, & शिव मंगल प्रसाद. (2024). अजोला की खेती. खेती, 76(12), 28-30. https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/1120