मृदा में सल्फर की कमी दूर करे यूरिया गोल्ड
सार
यूरिया, भारत का सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक है। इसकी खपत वर्ष 2009-10 और वर्ष 2022-23 के बीच 26.7 मिलियन टन से बढ़कर 35.7 मिलियन टन हो गई है। यूरिया के अधिक प्रयोग से मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों विशेषकर जिंक, सल्पफर व आयरन की कमी होने लगती है। भारतीय मृदा में लगभग 42 प्रतिशत सल्फर की कमी है और यह प्रत्येक वर्ष बढ़ती जा रही है। यूरिया की एक नई किस्म यूरिया गोल्ड, सल्पफर से लेपित है। इसके इस्तेमाल से फसलों में नाइट्रोजन के साथ-साथ सल्फर की भी पूर्ति होती है। यह नवोन्मेषी उर्वरक नीम-लेपित यूरिया की तुलना में अधिक किफायती और प्रभावी है। इससे पौधों में नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार होता है, उर्वरक की खपत कम करता है तथा फसल की गुणवत्ता बढ़ाता है। यूरिया गोल्ड के इस्तेमाल करने से सामान्य यूरिया की अपेक्षा लगभग 10 प्रतिशत मात्रा कम प्रयोग करनी पड़ती है। इसके द्वारा पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ उत्पादन लागत में भी कमी की जा सकती है।
Downloads
##submission.downloads##
प्रकाशित
अंक
खंड
अनुज्ञप्ति
Copyright (c) 2024 खेती
यह काम Creative Commons Attribution-NonCommercial-ShareAlike 4.0 International License के तहत लाइसेंस प्राप्त है.
खेती में प्रकाशित लेखों का कॉपीराइट भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पास निहित है, जिसे भारत या विदेश में किसी भी संगठन के साथ किसी भी समझौते में प्रवेश करने का अधिकार है, जो रिप्रोग्राफी, फोटोकॉपी, भंडारण और सूचना के प्रसार में शामिल है। इन पत्रिकाओं में सामग्री का उपयोग करने में परिषद को कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते जानकारी का उपयोग अकादमिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा हो, लेकिन व्यावसायिक उपयोग के लिए नहीं। आईसीएआर को देय क्रेडिट लाइन दी जानी चाहिए जहां सूचना का उपयोग किया जाएगा।