गौ-आधारित प्राकृतिक खेती

लेखक

  • देवेश पाठक कृषि विज्ञान केन्द्र, कठौरा, अमेठी (उत्तर प्रदेश)
  • भास्कर प्रताप सिंह कृषि विज्ञान केन्द्र, कठौरा, अमेठी (उत्तर प्रदेश)
  • राम रतन सिंह आ.न.दे.कृ. एवं प्रौ.वि.वि., कुमारगंज, अयोध्याद्ध उत्तर प्रदेश

सार

हरित क्रांति के बाद पूरे देश में रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग किया जाने लगा, इस कारण मृदा में मौजूद पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया। इससे मृदा की उर्वराशक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ा तथा पफसलों पर रोगों एवं कीटों का अधिक आक्रमण होने के कारण कीटनाशकों एवं दवाओं का प्रयोग बढ़ता गया। इसके परिणामस्वरूप मृदा, पानी एवं वातावरण प्रदूषित हो गये। रासायनिक उर्वरकों एवं दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से मृदा में विद्यमान सूक्ष्मजीवों तथा केंचुओं की क्रियाशीलता कम होती जा रही है। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह हुआ है कि मृदा का भौतिक, रासायनिक एवं जैविक संतुलन बिगड़ गया है। इसका मानव स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। आज प्रत्येक घर में कोई न कोई व्यक्ति रोग से ग्रस्त है। आय का एक बड़ा हिस्सा रोगों के इलाज में खर्च हो रहा है। इस तरह रासायनिक उर्वरकों एवं दवाओं के प्रयोग से उपज बढ़ने से जहां पेट तो भर गया, वहीं मृदा का पेट खाली हो गया है। वर्तमान कृषि पक्ति में सामान्यतः 3-4 पोषक तत्वों तथा मृदा में बहुत कम कार्बनिक पदार्थों का प्रयोग करते हैं, जबकि टिकाऊ कृषि के लिए मृदा में सभी 17 पोषक तत्वों एवं कार्बनिक पदार्थों एवं सूक्ष्मजीवों का होना आवश्यक है। यदि यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं, जब मृदा अनुपजाऊ हो जायेगी तथा उत्पादन प्रभावित होगा एवं कृषि रसायनों के उपयोग के कारण कैंसर जैसे 

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प्रकाशित

2024-06-25

अंक

खंड

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कैसे उद्धृत करें

देवेश पाठक, भास्कर प्रताप सिंह, & राम रतन सिंह. (2024). गौ-आधारित प्राकृतिक खेती. खेती, 77(2), 14-17. https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/1192