फसल उत्पादकता पर उच्च क्यारी रोपण का प्रभाव
सार
दीर्घकालीन फसल गहनता प्राप्त करने के लिए संरक्षण कृषि को कार्यान्वित किया जा रहा है। कुछ संरक्षण कृषि आधारित प्रौद्योगिकियां जैसे कि लेजर-लेवलर द्वारा भूमि समतलन, शून्य जुताई, उठी हुई क्यारी पर रोपाई, मृदा की सतह पर फसल अवशेष प्रतिधारण और फसल विविधीकरण का मूल्यांकन गंगा के मैदानी क्षेत्रों में पारंपरिक कृषि के विकल्प के रूप में किया गया है। संरक्षण कृषि की प्राथमिक श्रेणियों में से एक है शून्य जुताई विधि। इसमें फसल की कटाई से लेकर फसल बुआई तक की मृदा को बिना किसी बाधा के छोड़ दिया जाता है। इसमें बीज/उर्वरक लगाने के लिए एक संकीर्ण छिद्र बनाने से जुड़ी केवल न्यूनतम मृदा की गड़बड़ी होती है। क्यारी रोपण, बीज, उर्वरक और पानी जैसे आदानों के संरक्षण के लिए कूंड़ों द्वारा अलग-अलग उठी हुई क्यारियों पर पफसल उगाने की प्रथा है। क्यारियों को आमतौर पर 0.6-1.2 मीटर के अंतराल पर बनाया जाता है। इसके ऊपर 2-3 पंक्तियां बोई जाती हैं
और सिंचाई का पानी फर्रो में डाला जाता है।
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