ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई

लेखक

  • श्रीपति द्विवेदी डा. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)
  • मो. हसनैन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्राीय केन्द्र, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)
  • विनय कुमार बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर (बिहार)
  • फिरोज सैफी अमर सिंह डिग्री काॅलेज, लखावटी, बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
  • राजीव कुमार सिंह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली

सार

आधुनिक कृषि की उन्नत तकनीकों में गर्मी की गहरी जुताई का महत्वपूर्ण स्थान है। रबी फसलों जैसे-गेहूं, मक्का, दलहन व तिलहन की कटाई लगभग 20-30 अप्रैल तक समाप्त हो जाती है। इन फसलों की कटाई के उपरान्त मृदा में जो नमी बची रहती है, उसका उपयोग करते हुए मिट्टी पलटने वाले सामान्य हल या तांबेदार हल द्वारा की जाती है। इससे 20 सें.मी. गहराई तक जुताई हो जाती है। इस प्रकार गहरी जुताई करके खेत की मिट्टी को तेज धूप में सुखाने की प्रक्रिया को गर्मी की गहरी जुताई की संज्ञा दी जाती है। मृदा में सघनता के कारण, जो वायु एवं जल की पतली नलियां दब जाती हैं, उन्हें पिफर मूल स्थिति में आने का मौका मिल जाता है। मृदा दबावमुक्त हो जाती है और उसमें पौधों की वृद्धि एवं विकास से संबंधित भूमि की संरचना उत्तम भौतिक अवस्था में आ जाती है।

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प्रकाशित

2024-06-25

अंक

खंड

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कैसे उद्धृत करें

श्रीपति द्विवेदी, मो. हसनैन, विनय कुमार, फिरोज सैफी, & राजीव कुमार सिंह. (2024). ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई. खेती, 77(2), 25-26. https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/1196