धान परती भूमि में मसूर की खेती


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लेखक

  • हंसराज हंस भाकृअनुप का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना
  • राकेश कुमार भाकृअनुप का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना
  • बाल कृष्ण भाकृअनुप का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना
  • संजीव कुमार भाकृअनुप का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना
  • जयपाल सिंह चैधरी भाकृअनुप का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना

सार

संसाधन संरक्षण कृषि, फसल उत्पादन में स्थिरता बनाए रखने, मृदा के स्वास्थ्य में सुधार और उचित अवशेष प्रबंधन के साथ स्वच्छ पर्यावरण के लिए एक नया विकल्प है। धान की कटाई के समय मृदा में बची हुई नमी मसूर उगाने के लिए पर्याप्त होती है। धान-परती भूमि प्रणाली में मसूर की खेती से पफसल की सघनता एवं उत्पादकता को बढ़ाया जाता है। यह अपने प्रोटीनयुक्त अनाज और भूसा के कारण भोजन और मवेशी के चारे के रूप में विभिन्न उपयोगों के साथ एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। मसूर द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के कारण मृदा की उर्वरता बढ़ने से धान की उत्पादकता में बृद्धि होती है।

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प्रकाशित

2023-05-16

कैसे उद्धृत करें

हंस ह., कुमार र., कृष्ण ब., कुमार स., & चैधरी ज. स. (2023). धान परती भूमि में मसूर की खेती. खेती, 76(1), 23–25. Retrieved from https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/316

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