जैविक पद्धति से कीटों एवं रोगों का प्रबंधन
सार
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि फसलों पर लगने वाले हानिकारक कीटों से मुक्ति का एकमात्रा उपाय कीटनाशी रसायनों का उपयोग ही है। इस सोच के पीछे इन रसायनों का इतिहास छुपा हुआ है। वर्ष 1939 में डी.डी.टी. के आविष्कार और उसकी सफलता ने सारे विश्व को प्रभावित किया था। चालीस-पचास के दशको में बिस्तृत्व मारक छमता वाले कृत्रिम, कार्बनिक कीटनाशकों ने अन्य सभी नियंत्राण उपायों को धूमिल कर दिया। अंधाधुंध कीटनाशी के प्रयोग से अनेक समस्याएं पैदा हो गईं जैसे-नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्राु यथा परभक्षी एवं परजीवी भी मारे गये। ये परजीवी शत्राु-कीटों और अन्य नाशीजीवों का प्राकृतिक रूप से नियंत्राण करते हैं या अप्रत्यक्ष रूप से किसान को लाभ पहुंचाते हैं। जहरीले रसायनों के मिट्टी में जमाव से फसलों की उत्पादकता पहले से घट गई व पर्यावरण भी दूषित हो रहा है। हानिकारक कीटों में इन रसायनों की प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने लगी। इन समस्याओं पर काबू पाने के लिए जैविक नियंत्राण एवं कीटनाशक का प्रयोग प्रबंधन के प्रमुख अंग हैं।
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