धान-गेहूं फसलचक्र में अवशेषों का प्रबंधन

लेखक

  • कपिल चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, दामला, यमुनानगर (हरियाणा)
  • संदीप रावल चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, दामला, यमुनानगर (हरियाणा)
  • विशाल गोयल चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, दामला, यमुनानगर (हरियाणा)
  • आराधना बाली चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, दामला, यमुनानगर (हरियाणा)
  • एन.के. गोयल चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, दामला, यमुनानगर (हरियाणा)

सार

किसी भी फसल को सफलतापूर्वक उगाने के लिए बहुत से प्राकृतिक घटकों की आवश्यकता होती है। इनमें मृदा, पानी, वर्षा और मौसम प्रमुख हैं। अच्छी फसल लेने के साथ-साथ मृदा, पानी, पर्यावरण का संरक्षण करना भी जरूरी है। उत्तर-पूर्वी हरियाणा में धान-गेहूं एक मुख्य फसलचक्र है। यहां पर पानी, मृदा और पर्यावरण से संबंधित समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। भूमिगत जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। मृदा में पोषक तत्व तथा जैविक कार्बन की मात्रा घटने से उपजाऊ क्षमता घट रही है। फसल अवशेष जलाने के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। इसके अलावा मौसम की अनिश्चितता भी बढ़ती जा रही है।

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प्रकाशित

2023-07-04

कैसे उद्धृत करें

कपिल, रावल स., गोयल व., बाली आ., & गोयल ए. (2023). धान-गेहूं फसलचक्र में अवशेषों का प्रबंधन. खेती, 76(3), 55-56. https://epatrika.icar.org.in/index.php/kheti/article/view/479